मुझे मोक्ष की नहीं मोह की प्यास है।
तुम मेरे होठों पर रहो बासुरी की तरह।
यों ही गूँजते रहें प्रेम का स्वर
यों ही ताकती रहू तुम्हें,
यों ही होता रहे प्रेम का मृत्युंजय जाप
कि बजती रहे प्रेम की बाँसुरी
मैं सुनते रहूँ मैं जन्मों तक..
-----
हमारा बिछड़ना
ठीक वैसा ही था जैसे
नदी के दोनों छोर पे बैठ के हमने
एक दूसरे की अस्थियां
रोते हुए प्रवाहित की
जिसमें कर्तव्य का बोध था
और काल विजयी
जिसमें एक दूसरे के प्रति
अपने अंतिम उत्तरदायित्व की मजबूरी थी
और न चाहते हुए
एक दूसरे से एक दूसरे को मुक्त कर देने की
जिम्मेदारी !!
----
मैं चाहती हूँ
तुम आओ एक शाम
जब दिशाएँ शीतल हों
आसमान में लाली हो
गोधूलि हो चारों ओर
पंछी लौट रहे हों घर
एक अनन्त हरे मैदान में
हम चलेंगे
शरीर से परे
आत्मा की भाँति
प्रकाश की तरह
किसी न ख़त्म होने वाले पथ पर..
By
Pradnya Rasal
India
तुम मेरे होठों पर रहो बासुरी की तरह।
यों ही गूँजते रहें प्रेम का स्वर
यों ही ताकती रहू तुम्हें,
यों ही होता रहे प्रेम का मृत्युंजय जाप
कि बजती रहे प्रेम की बाँसुरी
मैं सुनते रहूँ मैं जन्मों तक..
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हमारा बिछड़ना
ठीक वैसा ही था जैसे
नदी के दोनों छोर पे बैठ के हमने
एक दूसरे की अस्थियां
रोते हुए प्रवाहित की
जिसमें कर्तव्य का बोध था
और काल विजयी
जिसमें एक दूसरे के प्रति
अपने अंतिम उत्तरदायित्व की मजबूरी थी
और न चाहते हुए
एक दूसरे से एक दूसरे को मुक्त कर देने की
जिम्मेदारी !!
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मैं चाहती हूँ
तुम आओ एक शाम
जब दिशाएँ शीतल हों
आसमान में लाली हो
गोधूलि हो चारों ओर
पंछी लौट रहे हों घर
एक अनन्त हरे मैदान में
हम चलेंगे
शरीर से परे
आत्मा की भाँति
प्रकाश की तरह
किसी न ख़त्म होने वाले पथ पर..
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