मैं चाहती हूँ
तुम आओ
एक शाम
जब
दिशाएँ शीतल हों
आसमान
में लाली हो
गोधूलि
हो चारों ओर
पंछी लौट
रहे हों घर
एक अनन्त
हरे मैदान में
हम
चलेंगे
शरीर से
परे
आत्मा की
भाँति
प्रकाश
की तरह
किसी न
ख़त्म होने वाले पथ पर..
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मुहब्बत सबको आज़माती है मुझे - तुम्हें ,, इसे - उसे हर किसी को जो भी इसको या ये किसी को छू भर भी दे तो आज़मा लेती है,, सोचती भी नहीं कि बंदे/बंदी पर कैसी गुज़रेगी।
मैं आजमाऊंगी अपनी मुहोंब्बत....
और फिर तुम्हारा छम से आ जाना, जैसे रूह में रब का उतर जाना,, जैसे जेठ की गर्मी में ओस से लिपटी घास का मिल जाना,, जैसे आषाढ़ मास में नाचता मोर दिख जाना।
कमबख़्त मुहब्बत कभी हारती नहीं, और दुआ भी यही है कभी हारे नहीं।
अच्छा लगता है अपनी छोटी छोटी ज़िद जीतना।
ए,, इश्क़ चल,,,आज तुझे होठों से लगा ही लेते है,,,देखते है,,तू मुझमें उतरता हैं.. या मैं तुझमें,,,
By
Pradnya Rasal
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