Monday, 8 March 2021

।।लौकडौन।।

 ।।लौकडौन।।

पेहली बार जब सुना ये अलफाझ, 
समझ न पाए डसे कुछ खास, 
जैसे वक़्त बीतने लगा, 
असर पडा हमे भी बडा, 
सोचा था कोरोना है एक बिमारी, 
कम पता था जलद ही हो जाएगी लाचारी, 
घरसे बाहर जाना हो गया मुश्किल, 
और बँक बैलेंस होता गया निल, 

अपनो ने किया अपनो को पराया, 
ये कैस चेहरा देखे उनका जो कभी न दिखाया ?
लाशौसे भरा कब्रिस्तान, 
ना किसी विमान ने भरा उडान, 
षोन पर अपनो की अवाज, 
झूम और गूगल मीटपर मिलने का रिवाज,
अब आम बात लगने लगी, 
कोरोना भी अब सगी लगने लगी। 
चेहरेपर फँनसि मासक,नया फैशन का असर, 
कहीपे लगी कतारे, राशन का कहर, 
कितने हुए बेरोजगार, कितने उजडे घर
कितने अपने खोए,किसीको हैं इसकी खबर? 
फिर भी उम्मीद है इक नया सवेरा,
ले अएगा वो खिलता चेहरा, 
हमे बनानेवाला हमे पनाहः भी देगा, 
कभी तो हमे भी सवारेगा, 
आज नही तो कल लौकडौन खुलेगा जरुर, 
फिरसे सब मिलकर एक पार्टी करेगे हुजूर।


Sarala Bhagat

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