धुआ धुआ सा समा
एक अंधेरा सा छाया हुआ
गुफतगू कर रहा हैं
जाने किसके साथ ये आस्मा
ये उदासी क्यूँ है छाई
ये किसकी है परछाई
है किसकी ये आहट
है किसने मुझे आवाज लगायी
गुमसुम सी बैठी हूँ, अकेली ही
किसके इंतज़ार में
पतझड़ में कर रही हूँ
सावन का इंतज़ार मैं
मृणालिनी दाबके
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