Friday, 27 December 2019

कविता

मेरी आखरी ख़्वाहिश....

"मैं उन औरतों को
जो अपनी इच्छा से कुएँ में कूदकर और चिता में जलकर मरी हैं
फिर से ज़िंदा करूँगी और उनके बयानात
दोबारा कलमबंद करूँगी
कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया?"







उसने कहा
तुम पीड़ाएं क्यों लिखती हो
प्रेम लिखा करो ना,

तो मैने कहा
यही तो है जो मेरी हैं
प्रेम ठहरता ही कब है मेरे पास,

फिर उसने कहा
ठहरता तो कुछ भी नहीं
ना प्रेम ना ही पीड़ाएं,

मैंने उसकी तरफ गौर से देखते हुए कहा

"क्या तुम भी नहीं ठहरोगे"?

वो निरुत्तर था!





पतझर के भी गीत होते है,
निश्चल, निष्पन्द,
मूक....
बताते नही है किसीको भी,
अपना अन्त रुदन,
उदासी भरी शामों में,,
पत्तों के आँसू,
सुख जाते है,,
पेड़ भी रूखे रूखे हो जाते है,,
पतझर की तरह,,
निश्चल,निष्पन्द,
मूक....

प्रज्ञा,,,,,

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