जाने क्यों ?
आज तुम्हारी याद आ रही है …..
अक़्सर रात में मेरे फोन में वही एल्बम खुली रहती है
जिसमें सिर्फ़ तुम्हारी ही तस्वीरें scroll होती रहती है ,
आज भी तुम्हारी बदमाशियों की वहीं तस्वीरें आँखों के आगे आ रही है ,
जिनमें तुम्हारी cutness चश्मे से झांक रही है ….
कानों में वही मेरा फेवरेट गाना बज रहा है
जो अक़्सर तुम्हारी याद में सुना करती हूँ
सफ़र चल रहा है और आँखें बह रही है …..
जाने क्यों ?
आज तुम्हारी याद आ रही है !
याद आ रहे हैं तुम्हारे साथ बीते पल
जब रात-रात भर आँखों में सिर्फ़ तुम्हारे ही ख़्वाब सजा करते थे ,
पलकों ने जैसे ठान ही लिया था एक चेहरे को ही बस नज़रों में कैद कर लिया था ….
घर मे मेरे आसपास तुम्हारा मंडराना
और एक नज़र भर तुमको देखकर वो सुकून पाना ….
कभी मस्तियां करते करते तो कभी किशोर के गानों के साथ झूमते
मुझे परेशान करने वाली तुम्हारी वो शरारतें याद आ रही है …..
जाने क्यों ?
आज तुम्हारी याद आ रही है ……
जाने क्यों आज तुम्हारी याद आ रही है …..
आज भी हंसी आती है उन बातों को सोचकर ,
जब तुम्हारे एक छोटे-से मैसेज से भी मेरे दिल की धड़कनें बढ़ जाया करती थी ….
तुम्हें मालूम भी नहीं मैंने तुम्हारी हर chat को अनगिनत बार पढ़ा है ,
तुम्हारी लिखी उन चिट्ठियों में भी मैंने इतना सारा प्रेम तलाशा है ….
ताज्जुब की बात ही तो यही है मैंने प्रेम तलाशा और तुमने मुझे
तुम एक कदम दोस्ती की ओर बढ़ाते गए ,
मैंने उससे भी आगे तुम्हारे लिए प्रेम के दो कदम बढ़ाये….
प्रेम और दोस्ती के बीच की हमारी वो हर बात याद आ रही है ,
जाने क्यों ?
आज तुम्हारी याद आ रही है …..
वो दिन जब तुम्हारे दोस्त तुम्हे मेरा नाम लेकर छेड़ा करते थे ,
मसखरी करने में मेरी सहेलियाँ कौनसी कम थी …
शायद तुम बहुत बार खीझ जाया करते थे ,
पर मै मन ही मन मुस्कुरा दिया करती थी ….
डायरी लिखते-लिखते तुम्हारे ख़्यालों में बितायी हर वो रात याद आ रही है ….
जाने क्यों ?
आज तुम्हारी याद आ रही है ….
शायद नहीं जानते तुम ….
बहुत कुछ लिखना चाहती हूँ तुम्हारे लिए….
जब तक स्याही के साथ सांसे चलती रहे ,
प्रेम के अथाह समन्दर में डूबकर भी लिखना चाहा है मेरा हर पल तुम्हारे लिए ….
मग़र कभी भी तुम्हें पूरी तरह लिख ना पायी…..
शायद प्रेम को परिभाषित करना मेरी कलम ने सीखा ही नहीं …..
जिस दिन परिभाषित हो जाओगे तुम और ये प्रेम ,
उस दिन मै , मै नहीं और तुम, तुम नहीं ….
उड़ने दो मुझे कल्पनाओं के इस आकाश में ,
हक़ीक़त से वाकिफ़ हूँ मग़र इन पंखों को तुमने ही दिशा दिखाई है …..
दोस्ती की सुबह और प्रेम की रात के बीच तुम्हारे साथ बितायी वो शामें याद आ रही है
जाने क्यों ?
आज तुम्हारी याद आ रही है ….
प्रज्ञा,,,,,,
मैं तुम्हें "miss"करती हूं...
"Miss"तो शायद एक लफ्ज़ है,मेरे आहेससत के लिए,जो मैं तुम्हारे बारे में महेसुस करती हूं।मुहोंब्बत इंसान को बहोत कमजोर कर देती है।
बहोत बेबस,मजबूर,महेकुम...और मुझे इन तीनों से डर लगने लगा है।
लेकिन इसके बावजूद तुम मेरी ज़िंदगी का मरकज़ बन गए हो।
तुमने एक दिन पूछा था"मेरी कौन सी बात तुम्हे अच्छी लगती है"?
मैं उस वक़्त बता नही पायी,,, मैं बताना चाहती थी,,
बस्स कहे नही पायी,,,
आज बताती हूँ,, तुम्हारी कौन सी बात है जो मुझे अच्छी नही लगती?
,मेरे इर्द गिर्द तुम्हारे अहसासात,,,,
मेरी वजूद में तुम्हारा आज भी ज़िंदा होना,,,
तुम्हारा प्यार करने का अंदाज़,,
हर बार जब तुम मेरे साथ होते हो,,
मैं आंखे मूंद लूं तो सामने आते है...
ये सारी सारी बातें मुझे तुम्हें बतानी थी।
वक़्त ही नही मिला,,,
लेकिन आज भी मैं तुम्हारे प्यार में मोम बन जाती हूँ।
तुम्हारी प्यार की तपिश में पिघलने लगती हूँ।
ये सारी बाते ,कितनी ही ख्वाहिशें तुमसे बंधी है,,,
याद है ,,तुमने एक बार मुझे संगेमरमर कहा था,,,
लेकिन मैं तो रेत की दीवार हूँ।
रोज रोज तुम्हारी यादों की पानी मे घुलती जा रही हूं,,,
लेकिन मुझे अब ढह जाने से डर लगता है।
क्यों कि थामने के लिए तुम भी नही हो,,,...
प्रज्ञा,,,,,,,,,
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