प्रेम
अक़्सर 'कृपया शांत रहें' की तख्तियों लगी लाइब्रेरियों में पैदा होता है, पनपता है
अबोली आँखों में तैरता
चुप्पी से पढ़ लिया जाता है
प्रेम की मातृभाषा मौन है....
प्रेम
काली-सफ़ेद आँखों में जन्मता है लाल डोरे-सा
काली सतरों वाले सफ़ेद वरकों के बीच
संजोया जाता है लाल गुलाबों-सा
सफ़ेद सच और काले झूठ के हिंडोले पे झूलता
कई बार उन्हीं क़िताबों की काली सफ़ेद कब्रों में
दफ़्न हो जाता है मलगुजे धब्बे-सा
प्रेम के पसंदीदा रंग काला और सफ़ेद हैं.
प्रेम
आँखों से बोलता
आँखों से ही सुनता है
प्रेम गूँगा-बहरा होता है....
प्रेम
की किलकारियों और मर्सियों को अक़्सर
लाइब्रेरियों में कहा-सुना जाता है
फूल किताबों में मिलते हैं
सूखे फूल उन्हीं से झड़ जाते हैं
प्रेम पढ़ा-लिखा होता है....
ज़िन्दगी हम बहोत लोगों से मिलते है,
उनके साथ रिश्ते बनाते है,
कुछ रिश्ते रास्ता बदलते हैं
कुछ मुड जाते है
कुछ साथ चलते है,,,आखरी पड़ाव तक
उन रिश्तों का कोई नाम नही होता,,,
लेकिन बड़े खास होते है हमारे लिए,,
जरूरी नही की हर रिश्ते को नामों के दायरे में बांध दिया जाए
कुछ बेनाम से रिश्ते भी ज़िन्दगी भर कायम रहते है,,,
बिल्कुल रेल की पटरी की तरह,,
साथ तो चलते है लेकिन साथ नही हो सकते,,
चुपचाप,,,मौन,,,
अपने अपने दायरे में कैद ये रिश्ते ,,,
यही सच है,,,उन रिश्तों का,,,
प्रज्ञा,,,,,,,
उनके साथ रिश्ते बनाते है,
कुछ रिश्ते रास्ता बदलते हैं
कुछ मुड जाते है
कुछ साथ चलते है,,,आखरी पड़ाव तक
उन रिश्तों का कोई नाम नही होता,,,
लेकिन बड़े खास होते है हमारे लिए,,
जरूरी नही की हर रिश्ते को नामों के दायरे में बांध दिया जाए
कुछ बेनाम से रिश्ते भी ज़िन्दगी भर कायम रहते है,,,
बिल्कुल रेल की पटरी की तरह,,
साथ तो चलते है लेकिन साथ नही हो सकते,,
चुपचाप,,,मौन,,,
अपने अपने दायरे में कैद ये रिश्ते ,,,
यही सच है,,,उन रिश्तों का,,,
प्रज्ञा,,,,,,,
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