मैं हर्फ़ नहीं के मिट जाऊं ......मैं ख्वाब नहीं के बिखर जाऊं ......मैं
ज़िन्दगी हूँ ,जो कतरा कतरा बहती है .........मेरा वजूद ही मेरे आस्तित्व
की पहेचन है ......मैंने आपने अस्तीव को बनाये रखने के लिये सालों संन्घर्ष
किया........ न मैं मीटी हूँ न मैं मीटुन्गी .......ज़ुल्म और सीतम की आंधी
मैं खडी हूँ ......एक आतल स्तम्भ की तरह ........ मैं ...इतीहास का अंग
........मैं भविष्य का सपना ......मैं वर्त्तमान का आस्तित्व .......मेरे
आयामों से जिंदा हैं ये संस्कृति ......हमने मिटकर इसकी जड़ोंको जिंदा रखा
है ....... मैं .....ज़िन्दगी .........मैं आबे-हयात ....मैं नूर के बूँद
.....मैं रिस्तों से बूनी चादर ,,,,,,मैं तपीश मैं गिरती बारीश की बूँद
..............................
.......................मैं औरत ,,,मैं औरत........ मैं औरत ....
Happy women's day !!!
Pradnya Rasal... Nagar
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