सुनो......
तुम्हें पता हैं, प्रेम क्या है?
प्रेम....
रंग नही
पानी नही
उजाला नही
अंधेरा नही
ताप नही
शीतलता नही
सिर्फ सुगंध है....
तुम्हारे साँसों की....
....…....................
अच्छा और सुनो,,
प्रेम...
प्रकृति नही
सृष्टी नही
समुद्र नही
सूर्य नही
चंद्र नही
सिर्फ झोंक है...
तुम्हारी यादों का ....
..…….......................... ...
अच्छा अब आखरी बार सुन लो,,
प्रेम,,
सांस नही
धड़कन नही
चेतना नही
स्पर्श नही
स्पंदन नही
अभिव्यक्ति नही
देह नही
सिर्फ आत्मा है,,,
जो मुझमें समाई हुई है,,,,
परमतृप्ति का अनुभव है
हमारी मोक्ष का...
यहीं प्रेम हैं....
प्रज्ञा,,,,,,,,,,,,,,,,,
No comments:
Post a Comment