काँच के आसमानी टुकड़ों में पिघलता हुवा आसमान,
उसपर बिछलती सूरज की करुणा
मैं सबको सहेज लेती हूं,,
क्यों कि .....
मेरे खिड़की के आठों कांच सुरक्षित है।
और सूर्य की करुणा
मेरे मुंडेर पर रोज़ बरसती है।
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ऐ ज़िन्दगी,
तेरी इन मगरूरियों का चुन चुन कर हिसाब करूंगी,
कुछ देर से ही सही लिख लिख कर तेरा ज़र्रा ज़र्रा साफ करूंगी।
आज कर ले हुक़ूमत तेरा दौर है,
जिस रोज़ राबता हुए तेरा मुझसे से,
लिख कर ले ले तेरा नामोनिशान ज़िन्दगी से साफ करूंगी।
तेरी इन मगरूरियों का चुन चुन कर हिसाब करूंगी,
कुछ देर से ही सही लिख लिख कर तेरा ज़र्रा ज़र्रा साफ करूंगी।
आज कर ले हुक़ूमत तेरा दौर है,
जिस रोज़ राबता हुए तेरा मुझसे से,
लिख कर ले ले तेरा नामोनिशान ज़िन्दगी से साफ करूंगी।
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तलवार तो आदमी का क्रोध भी उठा लेता है
पर
किताब आदमी को ख़ुद उठानी पड़ती है
मैं अपनी बहादुरी पर ख़ुश हु...
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By
Pradnya Rasal
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