खुद से खेलना बन गया था मुक़्क़दर मेरा, में तो एक कश्ती थी, ढूंढती समंदर मेरा
सोचा था बनके मोती छुप जाऊ अपने सीप में , लेहरो ने छीन लिया था साहिल मेरा
तुम हो मेरी जिंदगी का एक ऐसा आईना, जो टूट कर भी नहीं टूटता, बिखर कर भी नही बिखरता
क्या पता है तुझे कि मेरे जज्बातों का अलफ़ाज़ तू है मेरे होंठो पर बिखरी मुस्कराहट की आवाज़ तू है
मेरे चेहरे की मासूमियत में छिपी हर राज़ तू है
कभी तो वक़्त ठहरा होगा जो तुम मिले, क्या मुहब्बत की ओस गिरी होंगी जो तुम मिले
धीमी सी दिल की धकधक में कुछ तो था जो तुम मिले, तेरी पलकों के इशारे कुछ तो कह रहे थे जो तुम मिले
तेरी आँखों में एक अलग शोर था, पर होठों पे एक अजीब ख़ामोशी सी
दिल में मेरे सौ सवाल थे, और आँखों में ख्वाब थे -
तेरी नज़र उठाते ही, मेरे अल्फ़ाज़ को जजबात मिल गए और मुझे मेरे सारे जवाब मिल गए
ना में हीर, ना में सीता और नहीं में राधा हूँ - में तो बस अपने "पि" की "मीरा" हूँ
मेरे साये में मुझे तेरा अक्स नज़र आये, मेरी लकीरो में मुझे तेरा साथ नज़र आये
नहीं जानती में इसे क्या नाम दू, या तो तू मेरा साया है या तू मेरा आइना - जो भी नाम दू तुझे , साथ
दोनों ही नहीं छोड़ते यह जानती हूँ
तू आके लिपट जाए मुझसे, हाय महंगे महंगे ख्वाब मेरे
तस्सली सी है इस दिल को, आँखें मेरी देख सकती है ख्वाब ऐसे – क्यूंकि
तुम हो मेरी जिंदगी का एक ऐसा आईना, जो टूट कर भी नहीं टूटता,बिखर कर भी नही बिखरता
आजा थामले अब इन हाथों को, लकीरे जिसकी कमजोर है
चलदे उस राह पे इन कदमो के साथ, जिन्हे अँधेरे से अब लगता है डर
बन्न जा तू इन पलकों का वो ख्वाब, जो उठे तो आये तू नज़र,झुके तो तेरी बाँहों में बिखर जाये
कहती यह "पलक" अपने "पि" से - तू ही मेरा "सीप", तू ही मेरा "साहिल" है !!
बहा ले जा इस मोती को , जिस और तेरी मंज़िल है !!!
By
Nidhi Mehta
Dombivli, India
सोचा था बनके मोती छुप जाऊ अपने सीप में , लेहरो ने छीन लिया था साहिल मेरा
तुम हो मेरी जिंदगी का एक ऐसा आईना, जो टूट कर भी नहीं टूटता, बिखर कर भी नही बिखरता
क्या पता है तुझे कि मेरे जज्बातों का अलफ़ाज़ तू है मेरे होंठो पर बिखरी मुस्कराहट की आवाज़ तू है
मेरे चेहरे की मासूमियत में छिपी हर राज़ तू है
कभी तो वक़्त ठहरा होगा जो तुम मिले, क्या मुहब्बत की ओस गिरी होंगी जो तुम मिले
धीमी सी दिल की धकधक में कुछ तो था जो तुम मिले, तेरी पलकों के इशारे कुछ तो कह रहे थे जो तुम मिले
तेरी आँखों में एक अलग शोर था, पर होठों पे एक अजीब ख़ामोशी सी
दिल में मेरे सौ सवाल थे, और आँखों में ख्वाब थे -
तेरी नज़र उठाते ही, मेरे अल्फ़ाज़ को जजबात मिल गए और मुझे मेरे सारे जवाब मिल गए
ना में हीर, ना में सीता और नहीं में राधा हूँ - में तो बस अपने "पि" की "मीरा" हूँ
मेरे साये में मुझे तेरा अक्स नज़र आये, मेरी लकीरो में मुझे तेरा साथ नज़र आये
नहीं जानती में इसे क्या नाम दू, या तो तू मेरा साया है या तू मेरा आइना - जो भी नाम दू तुझे , साथ
दोनों ही नहीं छोड़ते यह जानती हूँ
तू आके लिपट जाए मुझसे, हाय महंगे महंगे ख्वाब मेरे
तस्सली सी है इस दिल को, आँखें मेरी देख सकती है ख्वाब ऐसे – क्यूंकि
तुम हो मेरी जिंदगी का एक ऐसा आईना, जो टूट कर भी नहीं टूटता,बिखर कर भी नही बिखरता
आजा थामले अब इन हाथों को, लकीरे जिसकी कमजोर है
चलदे उस राह पे इन कदमो के साथ, जिन्हे अँधेरे से अब लगता है डर
बन्न जा तू इन पलकों का वो ख्वाब, जो उठे तो आये तू नज़र,झुके तो तेरी बाँहों में बिखर जाये
कहती यह "पलक" अपने "पि" से - तू ही मेरा "सीप", तू ही मेरा "साहिल" है !!
बहा ले जा इस मोती को , जिस और तेरी मंज़िल है !!!
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Nidhi Mehta
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