अवगुण उर धरिये नही, जो हो वृक्ष बबूल। गुण लीजे तुलसी कहे, नही छाया मे शूल॥
बबूल का वृक्ष कॉंटो भरा है सभी जानते है। किसी कामका नहीहै, धुत्कारते भी है। पर जब कडी धूपमे कहीं कोई वृक्ष या छॉंव नही दिखती तो उसी वृक्षके छॉंवमे खडे होते है। सुकून पाते है। तब वह क्या अपने कॉंटे के साथ चुभोता हैॽ नहीं ना। वह तो अपनी अवहेलना, धुत्कार सब भूलकर छॉंवही देता है। इसी तरह हे मानव तू भी किसीके अवगुण को मत देख! उसके जो शितलता देनेवाले, प्रसन्नता करनेवाले गुण है उन्हींको देख और उन्हे ही अपना! इससे स्वयं का विकास तो होगा ही, पर जो अवगुणी या दुष्ट है उसे अपने किये पर, आचरण पर शर्म महसूस होगी व वह भी अपनी भूलोंका, दुर्गुणोंका पश्चात्ताप करेगा।
जब आम्रवृक्ष आमसे भरा होता है तो अक्सर उसपर पत्थर मारे जाते है। उसपर वृक्ष अपने फलही पत्थर मारनेवालेको देता है, न की पत्थर। जिसके पास जो होता है, वही तो वह देगा। हमे जो लेना है वो हम ले। जो हमारे कामकी चीज नही है उसे व्यर्थही क्यो लेनाॽ जब हम किसीकी दी गाली गलोच लेंगे ही नही तो हमारा क्या नुकसान होगाॽ जबतक हम लेते नही तबतक तो वह देनेवालेकी पास रहती है। यही सोच हमे अपने जीवनमे उतारनी है। ‘परिग्रह’से परे, संयमी जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करना है।
जिसकी जैसी सोच है, उसे वैसेही जग दिखता है और तरीके से देखना, नजरसे देखना उसे आता नही है। तो वह दुसरोंका (औरोंका) विचार कैसे करेॽ
अतः हमे तो अवश्य ही यह सोचना होगा कि मुझे अगर इसतरह का व्यवहार पसंद नही है, तो सामनवालेको कैसे पसंद होताॽ मै किसी बात पर बुरा मानता हूँ तो हमारे करनेसे दुसरा कैसे बुरा नही मानेगाॽ जो चीज मै अपने लिएँ पसंद नही करता, अच्छी नही मानता वह औरोंके लिए कैसी अच्छी होॽ यह अपनोको दुसरेकी जगह रखकर देखनेकी आदत हमारी सोच, सुदृढ करनेका उत्तम उपाय है। हरबार नही तो बीच बीचमे अजमाना चाहिए।
औरोंके दुर्गुण ढूँढनेसे बेहतर है स्वयंमे ढूँढे। दुसरेमे ढूँढनाहै तो उनके गुण ढूँढना और जरुर अपनाना। अपने अवगुण कोई बताता है तो उसपर चिन्तर, विचार कर अपनेमे सुधार लाये। क्योंकी वाहवाही करनेवाले तो बहुत मिलते है। पर सच्चे मित्र तो वही है जो अपने मित्र को सर्वगुण संपन्न देखना चाहते है। इसी सोचसे हमे अपने दर्शाए दोषोंको देखकर उनमे सुधारकर अपने आपको सर्वयोग्य बनाना है और संयमसे जीवन गुजारना है।
धन्यवाद!
निर्मला देविदास जैन.
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