Friday, 26 June 2020

Hindi Kavita

एक मौन है
जिसको घेरा हुआ है शब्दों ने
एक अनुभूति
जो घिरी हुई है अनुभवों से
एक निर्वात है
जिसके चारों और घूमते हुए
जन्मों के असंख्य रूप
कैसे भेदा जा सकता है ये चक्रव्यूह
जब कि शत्रु की हर सूरत
अपनी ही सूरत हो।
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मैं चली जाऊँ कहीं भी
किसी भी नाम से हो चाहे पहचान मेरी
मेरी सूरत खूबसूरत हो
या घृणित हो मेरा व्यक्तित्व
पर वो एक तो ऐसा है
जो मेरी नींदों में पुकारता रहा है
जो मेरी नींदों में पुकारता रहेगा
जब तक कि उस तक मैं पहुंच न जाऊँ
बाकी दुनिया में सब कुछ झूठ है मेरे लिए।
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वो जो बीत गया पल
जिस में तुम मेरे हुआ करते थे
वह पल बीता नहीं है
उसे क़ैद कर लिया है मेरी नींदों ने
ख़्वाबों की काल कोठरी में
मैं दुनिया के उजालों से भाग कर अक्सर
बैठती हूँ उस कोठरी के अनछुए कौने में
और देखती हूँ तुम्हें
प्रेम में... मेरी प्रतीक्षा करते हुए।
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मुझे प्रेम में
हीर-रांझा... सोहनी-महिवाल
लैला-मजनू... रोमियो जूलिएट
बनने की चाह रही

मैं प्रेम को
राधा-कृष्ण... सीता-राम
यशोधरा-गौतम की ही तरह
चाहती थी जीना

मैं प्रेम से
बस इतना चाहती थी
कि जब कभी हो
उसका और मेरा आमना सामना
तो हम बिना किसी संशय के
जान-पहचान सकें
अपनी जन्मों की यात्रा

परन्तु प्रेम से
इतना भी हो सका
प्रेम... मेरी अपेक्षाओं पर
कभी ख़रा उतरा!!!

 

प्रज्ञा

 

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